30 Days Festival Competition लेखनी कहानी -17-Oct-2022 अनन्त ब्रत पर्व (भाग 23
शीर्षक :- अनन्त ब्रत का पर्व
अनन्त भगवान का ब्रत भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को किया जाता है। इस दिन ही गणेश जी का विसर्जध किया जाता है।
इस दिन लोग अनन्त भगवान की पूजा करते है और एक चौदह गांठ का धागा बाजू पर बांधा जाता है। और पूरे दिन उपवास रखते है।
यह त्योहार पूरे देश में श्रद्धा से मनाया जाता है। अनंत चतुर्दशी पूजा में सबसे पहले संकल्प लिया जाता है. उसके बाद विधिवत कलश स्थापना की जाती है. कलश के ऊपर कुश के बने हुए भगवान अनंत के स्थापित किया जाता है. इसके बाद कच्चे सूत में हल्दी, कुमकुम और केसर लगाकर अनंत धागा बनाया जाता है. फिर उसे कलश के पास रखा जाता है. इसके बाद भगवान अनंत की पूजा की जाती है. पूजन के बाद अनंत में 14 गांठ लगाकर कलाई पर बांधा जाता है.
अनन्त चतुर्दशी को मनाने के सम्बन्ध में अनेक दन्त कथाए प्रचिलित है। उनमें से एक कथा निम्न प्रकार है :-
पुराने समय की बात है कि पौराणिक काल में सुमंत नामक एक ब्रह्मण अपनी पत्नी और बेटी सुशीला के साथ रहता था. सुशीला जब विवाह के योग्य हुई तो उसकी माता की मौत हो गयी।
अपनी पत्नी की मौत के बाद सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से विवाह कर लिया।. कुछ समय पश्चात् उसने अपनी बेटी सुशीला का विवाह कौंडिन्य नामक ऋषि से करवाया। कौंडिन्य ऋषि जब सुशीला को लेकर अपने आश्रम जा रहे थे तो रास्ते में रात हो गई ऐसे में वे एक जगह रुक गए. वहां महिलाएं अनंत चतुर्दशी व्रत की पूजा कर रही थीं।
सुशीला ने यह देखकर बहुत श्रद्धा सेनमस्कार किया । सुशीला जब उनके पास गई तो उन लोगों ने उसे व्रत की विधि और महिमा के बारे में बताया। सुशीला भी 14 गांठ वाला अनंत धागा बांधकर कौंडिन्य ऋिषि के पास गई। ऋषि ने उस अनंत धागे को तोड़कर आग में डाल दिया। जिससे अनंत भगवान का अपमान हुआ।
जिसके परिणाम स्वरूप ऋषि की सारी संपत्ति नष्ट हो गई। सुशीला को यह बात समझते देर ना लगी कि अनंत धागे को आग में नष्ट करने की वजह से उसके पति की यह हालत हुई है। कौंडिन्य ऋषि उस अनंत धागे को प्राप्त करने के लिए जंगल में भटकने लगे। इस क्रम में वे भूख-प्यास से जमीन पर गिर पड़े।
उनकी दशा को देखकर भगवान अनंत प्रकट हुए. उन्होंने कहा कि कौंडिन्य तुमने अपनी गलती का पश्चाताप कर लिया है। घर जाकर अनंत चतुर्दशी का व्रत करो और 14 साल तक इस व्रत को करना होगा। इसके प्रभाव से तुम्हारा जीवन सुखमय हो जाएगा और संपत्ति भी वापस आ जाएगी।
कौंडिन्य ऋषि ने वैसा ही किया, जिसके फलस्वरूप वे सुखी जीवन व्यतीत करने लगे। इस ब्रत को करने के बाद उनका जीवन सुखमय ब्यतीत हुआ।
कौडिन्य ऋषि के बाद यह ब्रत सभी लोग करने लगे। तबसे आज तक यह ब्रत बहुत श्रद्धा से मनाया जाता है।
30 Days Festival Competition हेतु रचना
नरेश शर्मा " पचौरी "
Palak chopra
09-Nov-2022 04:03 PM
Shandar 🌸🙏
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Mithi . S
09-Nov-2022 10:17 AM
Very nice
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Khan
08-Nov-2022 11:35 PM
Bahut khoob 😊🌸
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